मुंबई- देश में मुसलमानों की सामाजिक एवं आर्थिक दशा किसी से छुपी नहीं है! भारत सरकार द्वारा मुसलमानों की सामाजिक एवं
आर्थिक दशा जानने के लिए गठित सच्चर समिति ने भी देश में लगातार हाशिये पर जाते
मुसलामानों की दुर्दशा देश एवं दुनिया के सामने रखा था! इसी समिति ने मुसलमानों के
जान व माल के सुरक्षा के मद्दे नज़र विभिन्न सिफारिशें की थीं, जिसमें पुलिस बल में
मुसलामानों के प्रतिनिधित्व पर जोर देते
हुए कहा था कि, सांप्रदायिक दंगों पर लगाम लगाने तथा देश की सुरक्षा व्यवस्था में
मुसलमानों के कॉन्फिडेंस को बहाल करने के लिए, समुचित संख्या में मुसलामानों की
भर्ती ज़रूरी है! महाराष्ट्र में भी राज्य सरकार द्वारा गठीत मह्मुदुर्रह्मन कमिटी
ने भी इसी तरह की सिफारिश राज्य सरकार को की थी, किन्तु यह भी बड़ी विडम्बना है
कि, राज्य में अब तक इस सिफारिश पर अमल
करने का कष्ट किसी सरकार ने नहीं किया है!
इस सन्दर्भ में एम् पी जे द्वारा मांगी गयी एक आर टी आई के जवाब में राज्य
सरकार ने सन 2006 से 2013 के
दरम्यान पुलिस भर्ती का जो आंकड़ा पेश किया है वह न केवल चौंकाने वाला है बल्कि
निराशा जनक भी है!
दरअसल वर्ष 2006 में पुलिस भर्ती में मुसलमानों की
संख्या मात्र 3.04% है, जो सन 2007 में
3.59% है! इसी प्रकार
2008, 2009, 2011 तथा 2013 में क्रमशः 3.32%, 3.27%, 3.61% 2.27% तथा 3.29% है!
इन आंकड़ों से साफ़ पता चलता है कि, प्रदेश की सरकारें मुस्लिम समस्याओं को ले
कर कितना गंभीर हैं! किसी भी सरकार ने न तो सच्चर कमिटी की रिपोर्ट को और न ही
मह्मुदुर्रह्मन कमिटी की रिपोर्ट को गंभीरता पूर्वक लिया है, जो मुसलमानों के
प्रति राजनितिक उदासीनता को दर्शाता है! एम् पी जे ने इस सम्बन्ध में आम जन को
जागृत करने एवं सरकार को इस सम्बन्ध में उसके उत्तरदायित्व की याद दिलाने हेतु मीडिया
का सहारा लिया है!
No comments:
Post a Comment