ठाणे जिले के भिवंडी में आंगनवाड़ी की समस्या पर हुई जन सुनवाई

 

 


मुव्ह्मेन्ट फ़ॉर पीस अण्ड जस्टिस फ़ॉर वेलफेयर (MPJ) ने दिनांक 24 मार्च 2022 को भिवंडी में आंगनवाड़ी की समस्या पर जन सुनवाई का सफ़ल आयोजन किया. भिवंडी के बाल विकास प्रकल्प अधिकारी श्री संजय खंडागळे, अक्सा डिग्री कॉलेज की प्राचार्य सुश्री उनैज़ा फ़रीद, मोमिन गर्ल्स हाई स्कूल की प्रधानाध्यापक सुश्री ज़ावेरिया क़ाज़ी, डॉ.फौज़िया शेख, सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. दास और MPJ ठाणे अध्यक्ष श्री आमिर खान बतौर जूरी सदस्य जन सुनवाई में उपस्थित रहे.

 


बड़ी तादाद में भिवंडी के नागरिकों ने अपने इलाक़े में जूरी के सामने आंगनवाड़ी संबंधी समस्याओं को प्रस्तुत किया. अधिकतर शिकायत कर्ताओं ने बताया कि उनके इलाक़े में आंगनवाड़ी में गर्भवती महिलाओं, स्तन्दा माताओं, किशोरियों  और 6 साल से कम उम्र के बच्चों को आंगनवाड़ी से समुचित सेवाएं नहीं मिल पा रही है. उन्हें ये कह कर वापस कर  दिया जाता है कि तुम हमारी आंगनवाड़ी के सर्वे में नहीं आते हो. कई लोगों ने उनके क्षेत्र में आंगनवाड़ी नहीं होने की भी शिकायत की. इस अवसर पर लोगों ने अपने एरिया में आंगनवाड़ी केंद्र खोलने की मांग करते हुए लिखित अर्ज़ी भी दिया.  



जूरी ने जन सुनवाई में जनता की शिकायतों को बहुत ही गंभीरता से सुना और बाल विकास प्रकल्प अधिकारी भिवंडी ने शिकायतों और समस्याओं के निवारण का आश्वासन दिया. 

 

ग़ौर तलब है कि, स्वस्थ और विकसित समाज बनाने के लिये आंगनवाड़ी की सेवाएं बहुत ही महत्वपूर्ण हैं और MPJ पिछले कई सालों से आंगनवाड़ी कार्यक्रम को सफ़ल बनाने के लिए प्रयासरत  है. 

रेशनच्या प्रश्नावर एमपीजेने जनसुनावणी घेतली, मोठ्या प्रमाणात लोक रेशनपासून वंचित






मुंबई: जागतिक महामारी कोविड-19 नंतर मोठ्या प्रमाणात लोकांची आर्थिक स्थिती बिकट झालेली आहे. एका सर्वेक्षणानुसार, देशातील सुमारे 80% लोकांना अन्नधान्याची गरज आहे. आज लोक अन्न संकटाचा सामना करत आहेत आणि मोठी लोकसंख्या उपासमारीने त्रस्त आहे. 

सर्व गरजूंना अन्नधान्याची हमी देणारा अन्न सुरक्षा कायदा देशात लागू आहे. देशात कोणीही उपाशी झोपणार नाही, असे अन्न सुरक्षा कायदा सांगतो. पण आज तळगातील सत्य परिस्थितीवेगळी आहे. अनेक लोक अन्न सुरक्षेपासून वंचित आहेत आणि मोठ्या संख्येने लोकांचा हक्क नाकारला जात आहे. महाराष्ट्रही त्याला अपवाद नाही. आजही राज्यात मोठ्या प्रमाणात लोक रेशनपासून वंचित आहेत.




राज्यातील सुप्रसिद्ध जनआंदोलन मूव्हमेंट फॉर पीस अँड जस्टिस फॉर वेलफेअर (एमपीजे) या संस्थेने आज येथे आयोजित केलेल्या रेशनच्या समस्येवरील जनसुनवाई त ही बाब उघड झाली.


ही समस्या गंभीर असल्याचे अनेक उदाहरणे देऊन संघटनेचे मुंबई जिल्हाध्यक्ष रमेश कदम यांनी मांडले . सरकारने बनवलेल्या तक्रार निवारण प्रणाली अंतर्गत सामान्य लोक त्यांच्या रेशन संबंधित समस्यांबद्दल तक्रार करण्यास घाबरतात. त्यांना शिधापत्रिका रद्द करण्याची धमकी दिली जाते. या जनसुनवाईत महाराष्ट्र शासनाच्या अन्न व नागरी पुरवठा विभागाच्या अधिका-यांच्या उपस्थितीत लोकांनी आपल्या रेशन संबंधी समस्या कथन केल्या.  एमपीजे गेल्या अनेक वर्षांपासून लोकांचा अन्न सुरक्षेचा अधिकार मिळण्यासाठी  सातत्याने प्रयत्न करत आहे.




जनसुनावणीला महाराष्ट्र शासनाच्या अन्न व नागरी पुरवठा विभागाचे अधिकारी उपस्थित होते.  ज्युरीमध्ये प्रख्यात सामाजिक कार्यकर्ते आणि टाटा इन्स्टिट्यूट ऑफ सोशल सायन्सेसचे प्राध्यापक महेश कांबळे, चेंबूरचे शिधावाटप अधिकारी नागनाथ हंगरगे, खेडवाडीचे सहाय्यक शिधावाटप अधिकारी शिवाजी तोडकर, मुंबई उच्च न्यायालयाच्या वकील श्रीमती मणी, ज्येष्ठ पत्रकार निसार अली सय्यद, रेशनिंग कृती समिती फेडरेशनचे समनव्यक माणिक प्रभावती यांचा समावेश होता.  एमपीजे  महाराष्ट्र उपाध्यक्ष मुहम्मद अनीस आणि सामाजिक कार्यकर्ते शब्बीर देशमुख यांनी पेनल प्रतिनिधी म्हणून कामकाज पाहिले.






एका ज्येष्ठ नागरिकाने आपल्या तक्रारीत म्हटले आहे की, मी निपुत्रिक असून मला किंवा माझी पत्नी रेशन घेण्यासाठी दुकानात जाऊ शकत नाही. त्यांच्या समस्येवर प्रा. महेश कांबळे म्हणाले की, तुम्हाला घरपोच रेशन मिळावे. तुमच्या बाबतीत रेशन घरपोच देण्याची तरतूद कायद्यात करण्यात आली आहे. दिव्यांगासह अनेकांनी रेशन नाकारल्याबद्दल तक्रारी केल्या. रेशन नाकारणे, रेशन घेतल्यावर दुकानदारांकडून पावती न देणे, निकृष्ट दर्जाचे धान्य देणे, कोट्यापेक्षा कमी देणे,दुकानात तक्रार करण्याबाबत माहिती फलक नसणे,शिधावाटप अधिकारी मार्फत तक्रार अर्ज नाकारणे,हमीपत्र भरलेले असतानाही उत्पन्न दाखला मागून त्रास देणे,या आणि अशा बहुतांश तक्रारी होत्या. शिधावाटप अधिकाऱ्यांनी जनतेच्या तक्रारी ऐकून घेतल्या व या तक्रारींवर योग्य ती कार्यवाही करण्याचे आश्वासन देऊन ग्राहकांना मार्गदर्शन केले.






MPJ Ration Gat Online Meeting

देश में केजी से पीजी तक तालीम मुफ़्त होनी चाहिए

प्रो. शरद जावड़ेकर सभा को संबोधित करते हुए 

पुणे: देश में मुफ़्त और अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार क़ानून लागू होने के बावजूद प्राथमिक शिक्षा को लेकर अनेक समस्याएँ हैं. इसी मुद्दे पर आज यहाँ देश की प्रतिष्ठित जन आन्दोलन मुव्ह्मेन्ट फ़ॉर पीस एंड जस्टिस फ़ॉर वेलफेयर (एमपीजे)  के द्वारा एक वर्कशाप का आयोजन किया गया.  सभा को संबोधित करते हुए एमपीजे के प्रदेश अध्यक्ष मुहम्मद सिराज ने कहा कि, किसी भी समाज और देश के विकास में शिक्षा की अहम भूमिका होती है. जिहालत की वजह से ग़रीबी, बीमारी और अशांति जैसी विभिन्न समस्याओं का जन्म होता है. किसी भी समाज में शिक्षा के बिना सार्थक तबदीली की कल्पना भी नहीं की जा सकती है. 


शिक्षा मानव जीवन का मूल आधार होता है. यही वजह है कि, शिक्षा हर व्यक्ति का मूल अधिकार माना जाता है. हमारे देश में भी अशिक्षा की वजह से बहुत सारी सामाजिक बीमारियों ने जन्म लिया है. लेकिन दुर्भाग्यवश हमारे देश में अभी तक शिक्षा को हर व्यक्ति का मूल अधिकार तस्लीम नहीं किया गया है. देश में वर्ष 2009 में मुफ़्त और अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार क़ानून बना, जिसने शिक्षा को 6 से 14 साल के बच्चों का मौलिक अधिकार बनाया. लेकिन इस क़ानून ने प्राथमिक शिक्षा की क्वालिटी को बेहतर बनाने में अब तक कोई भूमिका नहीं निभाई है. देश में प्राथमिक शिक्षा का स्तर बहुत गिर गया है, जो बहुत ही चिंता जनक है.


आर टी ई कृति समिति के अध्यक्ष प्रो. शरद जावड़ेकर ने इस अवसर पर कहा कि, ब्रिटेन में वर्ष 1832 में ही शिक्षा को हर नागरिक का मूल अधिकार घोषित कर दिया गया. लेकिन हमारे देश में वर्ष 2009 में मूल अधिकार तस्लीम किया गया, वह भी सिर्फ़ 8 वीं क्लास तक. इसका मतलब ये है कि, सरकार आठवीं क्लास तक बच्चों को पढ़ा कर सिर्फ़ दीहारी मज़दूर बनाना चाहती है. उन्होंने कहा कि शिक्षा केजी से पीजी तक फ्री होनी चाहिए.

 

सभा को संबोधित करते हुए शिक्षाविद प्रो. काजिम मलिक ने देश में प्राथमिक शिक्षा के गिरते हुए स्तर और ख़राब क्वालिटी पर चिंता व्यक्त करते हुए, शिक्षा के अधिकार क़ानून में स्कूल प्रबंधन समिति की भूमिका पर प्रकाश डाला. उन्होंने पालकों को स्कूल मैनेजमेंट कमिटी के बारे में मार्गदर्शन प्रदान करते हुए स्कूल के प्रबंधन में जन भागीदारी को सुनिश्चित करने का आव्हान किया. इस वर्कशॉप में विभिन्न सामाजिक संगठनों, पालकों और शिक्षाविदों की बड़ी तादाद मौजूद थी.

 

 

 

एमपीजे की मुंबई यूनिट ने मनाया मानवाधिकार दिवस


 


मुंबई: मुव्ह्मेन्ट फ़ॉर पीस एंड जस्टिस फ़ॉर वेलफेयर (एमपीजे) की मुंबई यूनिट ने अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस के अवसर पर 10 दिसम्बर 2021 को यहाँ सद्भावना मंच के सहयोग से "भारत में मानव अधिकार - वर्तमान परिदृश्य" पर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित किया। इस प्रेस कांफ्रेंस में सुश्री यशोधरा साल्वे, सामाजिक कार्यकर्त्ता , श्री हसन कमाल पत्रकार और साहित्यकार, श्री रमेश कदम, अध्यक्ष, एमपीजे (मुंबई), श्री विश्वास उतागी,अर्थशास्त्री और बैंकर ,श्री इलियास ख़ान फ़लाही, उपाध्यक्ष, जमात-ए-इस्लामी हिंद (महाराष्ट्र) और डॉ सलीम खान राजनीतिक विश्लेषक ने मानवाधिकारों के उल्लंघन पर अपने विचार रखे।

 


ग़ौर तलब है कि, देश में मानव अधिकारों का हनन एक बड़ी समस्या है। आज लोगों के उन अधिकारों का हनन हो रहा है, जो उसे बतौर एक इंसान पैदा होने के नाते प्राप्त होते हैं। जिसमें इज्ज़त के साथ जीने और फलने फूलने का अधिकार शामिल है। मानव अधिकार सार्वभौमिक है। इन अधिकारों की मान्यता वैश्विक स्तर पर है। हालांकि, देश का संविधान भी नागरिकों को इज्ज़त के साथ जीने का अधिकार प्रदान करता है। लेकिन देश में मानवाधिकारों के हनन पर लगाम लगने के बजाए, दिनों-दिन हनन का मामला बढ़ता ही जा रहा है। सच कहें तो, मानवाधिकारों का हनन आजकल हमारे जीवन की दिनचर्या बन गया है। मॉब लिंचिंग, धार्मिक स्थलों पर हमले और सांप्रदायिक नफ़रत फैलाना भारत में मानवाधिकारों के हनन के कुछ उदाहरण हैं।  मानव अधिकारों के हनन के संदर्भ में अगर महिलाओं की बात करें तो, महिलाओं के एक इंसान होने के नाते जो उनके जन्मजात अधिकार हैं, उसकी बात तो रहने ही दीजिए। हाल के दिनों में महिला उत्पीड़न के मामलों में बेतहाशा वृद्धि हुई है। राष्ट्रीय महिला आयोग ने कहा है कि साल 2021 के गत आठ महीनों में महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराधों की शिकायतों में 46 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। यही हाल सामाजिक और आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों के अधिकारों का है। श्रमिकों को भी उनके न्यायोचित अधिकार नहीं मिल रहे हैं।

 



ह्यूमन राइट्स वॉच ने अपनी वर्ल्ड रिपोर्ट 2020 में देश में हो रहे मानव अधिकारों के हनन पर चिंता जताई है। इसके अलावा यूएन महासचिव की एक रिपोर्ट में भारत उन 38 "शर्मनाक" देशों की सूची में था, जहां मानवाधिकारों और उसके संरक्षण के लिए काम कर रहे लोगों और संगठनों का बड़े पैमाने पर दमन हो रहा है। लेकिन स्थिति सुधरने के बजाए और ख़राब होती जा रही है। जब कि, ये भी एक सच है कि, एक-दूसरे के अधिकारों का सम्मान किए बिना सभ्य समाज जीवित नहीं रह सकता है।

 

इसलिए मुव्ह्मेन्ट फ़ॉर पीस एंड जस्टिस फ़ॉर वेलफेयर (एम पी जे), जो अधिकार आधारित जन आन्दोलन है, ने लगातार बढ़ते मानवाधिकारों के हनन पर अवाम, नीति निर्माताओं और शासन का ध्यान आकर्षित करने के लिए मानवाधिकार दिवस के अवसर पर सद्भावना मंच के सहयोग से प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित किया। सद्भावना मंच विभिन्न धर्मों, जातियों और समुदाय के लोगों का समाज में शांति, सहयोग और सौहाद्र स्थापित करने के लिए काम करने वाला एक साझा मंच है।

 


 


 






एमपीजे ने मनाया संविधान दिवस




आज 26 नवम्बर को महाराष्ट्र के विभिन्न स्थानों पर एमपीजे ने संविधान दिवस मनाया. दरअसल देश का संविधान 26 नवम्बर 1949 को बनकर तैयार हुआ था और यह दिन (26 नवम्बर) देश में संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है. एमपीजे ने हर साल की भांति इस साल भी संविधान दिवस के अवसर पर लोगों विशेषकर युवाओं को संविधान के महत्व और भारत के संवैधानिक मूल्यों और विचारों को समझने और इसके प्रचार-प्रसार हेतु जागरूक करने की ग़र्ज़ से प्रदेश भर में अनेक कार्यक्रम आयोजित किए और लोगों को सन्देश दिया कि, संविधान के मूल्यों और विचारों को समझना और इसका प्रचार-प्रसार करना देश के हर नागरिक का मौलिक कर्तव्य है.

 

इस अवसर पर जन सभा से लेकर स्कूल, कॉलेजों में संविधान पर व्यख्यान और गोष्ठी का आयोजन किया गया. लोगों को संविधान की प्रस्तावना को पढ़ कर सुनाया गया और उसके महत्व समझाया गया. इसके अलावा कई जगहों पर संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों और कर्तव्यों  के बारे में सविस्तार बताया गया. लोगों ने संविधान की प्रस्तावना पढ़ कर संविधान के पालन हेतु शपथ भी लिया.





















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कृषि उपज की क़ीमत पर किसानों को सुरक्षा प्रदान करे सरकार: एम.पी.जे.


 


प्रदेश की जानी मानी जन आन्दोलन मुव्हमेंट फ़ॉर पीस एंड जस्टिस फ़ॉर वेलफेयर ने रविवार को अकोला और यवतमाल में  एक प्रेस वार्ता का आयोजन कर के भारत सरकार द्वारा विवादास्पद कृषि कानूनों को वापस लिए जाने की घोषणा का स्वागत करते हुए किसानों को उनके सफ़ल जन आन्दोलन के लिए बधाई दिया है. एमपीजे ने  इसे किसानों की जीत, संविधान और प्रजातंत्र की जीत बताते हुए किसानों को उनके उपज पर क़ीमत की सुरक्षा प्रदान करने की मांग की है.

 

एमपीजे ने कृषि उत्पादों के लिए मूल्य सुरक्षा तंत्र (Price Security Mechanism) लागू करने हेतु अविलम्ब आवश्यक क़दम उठाए जाने का अनुरोध किया है. इसके लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से कम क़ीमत पर की गई ख़रीद को ग़ैर क़ानूनी घोषित किए जाने की मांग की है, ताकि ये सुनिश्चित हो सके कि, किसान चाहे अपने उत्पाद मंडी में बेचे या मंडी से बाहर, उसे न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से कम दाम पर अपने उत्पाद बेचने के लिए मजबूर न होना पड़े.

 

एमपीजे के प्रवक्ता हुसैन खान ने मीडिया को संबोधित करते हुए कहा कि, सरकार ने जन दबाव में इन विवादग्रस्त कानूनों को  वापस ले लिया है, ये अच्छी बात है. लेकिन इन कानूनों की वापसी किसानों और खेत मजदूरों की समस्याओं का हल नहीं है. क्योंकि देश में कृषि संकट इन विवादास्पद कानूनों से पहले भी था, जो आज भी ज्यों का त्यों है. इन तीनों क़ानूनों ने तो किसानों की समस्याओं को और बढ़ाने का काम किया है. इसलिए एमपीजे भारत सरकार से किसानों के कल्याण के मद्देनज़र निम्नलिखित मांग करती है:

 

  • किसानों और उनके प्रतिनिधियों के साथ रचनात्मक संवाद,
  • सभी कृषि उत्पादों के लिए एमएसपी की क़ानूनी गारंटी,
  • किसान आन्दोलन के दौरान दर्ज मुक़दमे वापस लिए जाएँ और
  • आन्दोलन के दौरान शहीद हुए किसानों के परिवारों को उचित मुआवज़ा दिया जाए

 

हुसैन खान ने कहा कि, सरकार से हम अनुरोध करते हैं कि जन हित में सरकार किसानों की समस्याओं पर जल्द से जल्द विचार करे और उन्हें न्याय दे.










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